Ujjain Kaal Sarp Dosh Puja

कालसर्प दोष पूजा उज्जैन

कालसर्प दोष पूजा, मंगल भात पूजा, महामृत्युंजय जाप, अर्क/कुंभ विवाह, नव ग्रह शांति, बगलामुखी माता पुजा एवं विशेष संतान प्राप्ति का उत्कृष्ट परिणाम तुरंत प्राप्त होता है।

Call Now
Kaal Sarp dosh puja in Ujjain Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

Kaal Sarp Dosh Puja in Ujjain: Pt Ashok Shastri

कालसर्प दोष पूजा उज्जैन, मंगल दोष शांति पूजा उज्जैन विशेषज्ञ होने के नाते पंडित अशोक शास्त्री को 10 वर्षो का अनुभव पूजा आयोजित करने में प्राप्त है। पंडित श्री पंडित अशोक शास्त्री धार्मिक अनुष्ठानों में रूचि अपने बालयकाल से ही थी, पंडित अशोक शास्त्री को समस्त प्रकार के अनुष्ठानो का प्रयोगत्मक ज्ञान एवं सम्पूर्ण विधि विधान की जानकारी पंडित अशोक शास्त्री के गुरुजी से प्राप्त हुयी है, पंडित जी वैदिक अनुष्ठानों में विभूषित है एवं सभी प्रकार के दोष निवारण के कार्यो को करते हुए १0 वर्षो से भी ज्यादा हो गया है। वर्तमान में पंडित अशोक शास्त्री द्वारा उज्जैन नगरी में कालसर्प दोष पूजा पूर्ण वैदिक विधि विधान द्वारा संपन्न किया है, इसके अतिरिक्त महामृत्युंजय जाप, मंगल दोष शांति, सूर्य ग्रहण दोष शांति, चंद्र ग्रहण दोष शांति, अंगारक दोष शांति, बुध चांडाल दोष शांति, गुरु चांडाल दोष शांति, शुक्र चांडाल दोष शांति, शनि चांडाल दोष शांति, राहु केतु शांति, विश्वशांति, अर्क विवाह, कुंभ विवाह, शनि मंत्र के जाप, राहु मंत्र के जाप, केतु मंत्र के जाप, केंद्रों में दोष शांति, उत्पात योग जैसे अनुष्ठानों को सम्पूर्ण वैदिक पद्धति द्वारा आवश्यकता के अनुसार करते है। पंडित अशोक शास्त्री जन्म कुंडली अध्ययन अवं पत्रिका मिलान में भी सिद्धस्त है, इन समस्त कार्यो के साथ साथ पंडित अशोक शास्त्री वास्तु पूजन, वास्तु दोष निवारण एवं व्यापर व्यवसाय वाधा निवारण का पूजन भी सम्पूर्ण विधि विधान से करते है। कालसर्प दोष पूजा को कालसर्प योग भी कहा जाता है, कालसर्प दोष पूजा तब होती है, जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आते हैं। कालसर्प योग (दोष) शब्द के संस्कृत में कई अर्थ हैं, लेकिन इस शब्द से जुड़े खतरे और खतरे का खतरा है. इसके कई अर्थों में, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि काल का मतलब समय है, और सर्प का मतलब सांप है। कालसर्प हानि, दुविधा, बाधा को सूचित करता है। कुंडली में कालसर्प होने से कितने लोगो को कष्ट हुवा है, इसका इतिहास गवाह है।

Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

पूजा और अनुष्ठान जिनमे पंडित अशोक शास्त्री जी की विशेषज्ञता हैं:

दोष निवारणार्थ अनुष्ठान, मंगल दोष निवारण (भातपूजन), सम्पूर्ण कालसर्प दोष निवारण, नवग्रह शांति पूजन, वास्तु दोष शांति, द्विविवाह योग शांति, नक्षत्र/योग शांति, रोग निवारण शांति, समस्त विध्न शांति, विवाह संबंधी विघ्न शांति, नवग्रह शांति, कामना पूर्ति अनुष्ठान, भूमि प्राप्ति, धन प्राप्ति, शत्रु विजय प्राप्ति, एश्वर्य प्राप्ति, शुभ (मनचाहा) वर/वधु प्राप्ति, शीघ्र विवाह, सर्व मनोकामना पूर्ति, व्यापार वृध्दि, रक्षा कवच, अन्य सिद्ध अनुष्ठान एवं पूज, पाठ, जाप एवं अन्य अनुष्ठान, दुर्गासप्तशती पाठ, श्री यन्त्र अनुष्ठान, कुम्भ/अर्क विवाह, गृह वास्तु पूजन, गृह प्रवेश पूजन, देव प्राण प्रतिष्ठा, रूद्रपाठ/रूद्राभिषेक, विवाह संस्कार, संगीतमय श्रीमद भागवत कथा

काल सर्प दोष पूजा उज्जैन

काल सर्प दोष पूजा उज्जैन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध पूजा है। इस पूजा को करने से सामान्यतः लोग यह मानते हैं कि उनकी जातकी दशा में कोई अशुभ ग्रहों का प्रभाव नहीं होता है और उन्हें समृद्धि एवं सुख आता है। उज्जैन में काल सर्प दोष पूजा की विशेषता इसमें होती है कि यहाँ यह पूजा प्राचीन तंत्र विद्या के अनुसार की जाती है। यह पूजा साधक के भविष्य के लिए बहुत अधिक महत्व रखती है और इस पूजा के द्वारा साधक अपने भविष्य को सुखमय बनाने के लिए निश्चित रूप से कुछ न कुछ कर सकता है। इस पूजा के दौरान साधक को नाग देवता की पूजा करनी होती है जिससे उन्हें बहुत से फायदे होते हैं। इस पूजा में साधक को विशेष विधियों का पालन करना होता है जिससे उन्हें उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और उन्हें सफलता का सामना करने में आसानी होती है।

Our services

सभी प्रकार के पूजन, दोष निवारण एवं मांगलिक कार्य आपके घर, कार्यालय या अन्य स्थानों पर किये जाते हैं|

काल सर्प दोष पूजा

स्वयं से तथा परिवार से पूर्व जन्म में या इस जन्म में पितृ नाग तथा देव संबंधित अपराध हो जाने के कारण जन्म पत्रिका में ऐसा योग बनता है जिसे हम कालसर्प दोष कहते हैं

मंगल दोष भात पूजा

मंगल दोष निवारण भात पूजन द्वारा एक मात्र उज्जैन में ही भात पूजन कर मंगल शांति की जाती है।

ग्रहण दोष पूजा

यदि सूर्य या चंद्रमा के घर में राहु-केतु में से कोई एक ग्रह मौजूद हो तो यह ग्रहण दोष कहलाता है।

अर्क/कुम्भ विवाह पूजा

शादी-ब्याह में इसकी प्रमुखता देखि जा रही है पर इस दोष के बहुत सारे परिहार भी है

पितृ दोष पूजा

पितृदोष निवारण पूजा सभी प्रकार के पितृदोषों से मुक्ति मिल जाती है।

चांडाल दोष पूजा

ज्योतिष में कई ऐसे योग होते हैं जिनका मनुष्य पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गुरू चांडाल योग बहुत ही अशुभ माना जाता है

रूद्र अभिषेक पूजा

रुद्राभिषेक करके आप शिव से मनचाहा वरदान पा सकते हैं. क्योंकि शिव के रुद्र रूप को बहुत प्रिय है

नवग्रह शांति

नवग्रह नौ ब्रह्मांडीय वस्तुएं हैं और ऐसा कहा जाता है कि इनका मानव जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

काल सर्प दोष पूजा उज्जैन

काल सर्प दोष पूजा उज्जैन एक प्राचीन और पवित्र अनुष्ठान है जो हिंदू धर्म में विश्वास रखने वाले लोगों द्वारा किया जाता है. इस पूजा का उद्देश्य काल सर्प दोष के दुष्प्रभावों को दूर करना है. काल सर्प दोष एक प्रकार का ग्रह दोष है जो तब होता है जब चंद्रमा राहु और केतु के बीच स्थित होता है. राहु और केतु को हिंदू धर्म में नकारात्मक ग्रह माना जाता है. काल सर्प दोष के कारण लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, वित्तीय समस्याएं, पारिवारिक समस्याएं, और करियर में बाधाएं. काल सर्प दोष पूजा एक शक्तिशाली उपाय है जो इन समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकता है।
काल सर्प दोष हिंदू ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में एक मान्यता है। यह विशेष रूप से व्यक्ति की जन्म कुंडली (हॉरोस्कोप) में ग्रह राहु और केतु के विशेष स्थानन से उत्पन्न होता है। ये वेदिक ज्योतिष में छाया ग्रह या नोड्स कहलाते हैं। पारंपरिक काल सर्प दोष में, सभी सात पारंपरिक ग्रह (सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि) या तो राहु या केतु के पीछे स्थित होते हैं। इसका मान्यता से अर्थ है कि काल सर्प दोष वाले व्यक्ति को जीवन में कुछ समस्याएं और चुनौतियां आ सकती हैं। इस दोष के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय और निवारण करने के लिए पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। धार्मिक विश्वास के अनुसार, इन उपायों से काल सर्प दोष के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है और व्यक्ति को शुभता और समृद्धि की प्राप्ति में मदद मिल सकती है। यह धार्मिक मान्यता है और इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोन से समर्थित नहीं किया जाता है। विभिन्न संस्कृति और धर्म के अनुसार, मान्यताएं और ज्योतिषीय दोषों को महत्व दिया जाता है, जिसमें काल सर्प दोष एक प्रमुख रूप से उचित है।
पश्चिम भारतीय समुदाय में ज्योतिष विज्ञान को बहुत महत्व दिया जाता है और यहां धार्मिक अनुष्ठानों में भी ज्योतिष का अहम योगदान है। इसी तरह काल सर्प दोष एक ऐसा ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य है जिसमें नाग देवताओं के प्रकारों में ग्रह दोष के कारण मनुष्य को प्रभावित किया जाता है। इसके अशुभ प्रभाव को नष्ट करने के लिए काल सर्प दोष पूजा का आयोजन किया जाता है, और उज्जैन इस पूजा के लिए एक प्रमुख स्थान है। काल सर्प दोष एक ज्योतिषीय समस्या है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को असुखी और परेशान कर सकती है। इसे नाग दोष भी कहा जाता है। ज्योतिष में कहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति के जन्मकुंडली में राहु और केतु ग्रह काल सर्प योग के रूप में संप्रेषित हो तो वह व्यक्ति काल सर्प दोष से पीड़ित होता है। इस दोष को नष्ट करने के लिए विशेष प्रकार की पूजा एवं अनुष्ठान करना आवश्यक होता है। उज्जैन, मध्य प्रदेश के मशहूर पौराणिक स्थलों में से एक है, और यहां काल सर्प दोष पूजा का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है। मान्यता है कि यहां काल सर्प दोष पूजा करने से व्यक्ति को नाग दोष से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। यह पूजा उज्जैन में भी की जा सकती है, और यहां काल सर्प दोष पूजा एक प्रसिद्ध धार्मिक अनुष्ठान है। काल सर्प दोष पूजा का आयोजन विशेष विधि से किया जाता है। इस पूजा में प्रायः नाग देवताओं की मूर्तियों का उपयोग किया जाता है, और विशेष मंत्रों और विधियों का पालन किया जाता है। पूजा के अनुष्ठान के बाद यजमान व्यक्ति को धूप, दीप, फूल, और नाग देवताओं को चावल और दूध का भोग चढ़ाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।


काल सर्प दोष पूजा का अनुष्ठान विशेष तरीके से किया जाता है और इसका महत्वपूर्ण स्थान उज्जैन शहर में है। यहां नाग देवताओं की पूजा के साथ-साथ अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी होते हैं, जो विशेष रूप से यात्रियों और भक्तों को आकर्षित करते हैं। इस पूजा का आयोजन कराने से नाग दोष से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक, स्वास्थ्य, और परिवार में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इसे ध्यान में रखते हुए उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में इस पूजा का आयोजन कराना व्यक्ति के जीवन को समृद्ध, सुखी, और समृद्धि से परिपूर्ण बनाता है। अतः, ज्योतिष विज्ञान के इस महत्वपूर्ण पहलू को ध्यान में रखते हुए, काल सर्प दोष पूजा उज्जैन आयोजन में विशेष धार्मिक महत्व रखता है, और भगवान नाग देवताओं की अनुग्रह से व्यक्ति का जीवन समृद्ध, सुखी, और शांतिपूर्ण बनता है।

पूजन दोष निवारण एवं मांगलिक कार्यो की चित्रमाला

Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

विशेष कालसर्प योग शान्ति विधान

Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

मंगल ग्रह शांति भात पूजन

Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

मंगल ग्रह शांति पूजन

Why Choose Us

पंडित अशोक शास्त्री जो को समस्त प्रकार के अनुष्ठानो का प्रयोगत्मक ज्ञान एवं सम्पूर्ण विधि विधान की जानकारी, पंडित जी संगीतमय श्रीमद भागवत कथा गायन वाचन भी करते हैं के गुरुजनों तथा पिताजी द्वारा प्राप्त हुयी है,
पंडित जी वैदिक अनुष्ठानों में आचार्य की उपाधि से विभूषित है एवं सभी प्रकार के दोष एवं वधाओ के निवारण के कार्यो को करते हुए १५ वर्षो से भी ज्यादा हो गया है।

  • 1000+Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

    यजमान द्वारा भरोसा

  • 10+Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

    अनुभव

  • 100+Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

    उपलब्धता

  • 100%+Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

    मुफ्त परामर्श

  • 99+Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

    श्रेष्ठ परिणाम

What My Client Say

Kaal Sarp dosh puja in Ujjain
Kaal Sarp dosh puja in Ujjain
Kaal Sarp dosh puja in Ujjain
Kaal Sarp dosh puja in Ujjain
Kaal Sarp dosh puja in Ujjain

“Guru Ji Assisted me through out the whole process ( From picking up from bus stand to Drop off ) and Arranged stay for me. If you are looking for this pooja you Can contact them."

“Best pandit ji in Ujjain kal sarp dosh puja for more details and contact: kal sarp dosh puja...😊😊😊”

“bahot bahot dhanyawad meri bahan ki mangal dosh ki puja karne ke liye ab uske jivan me khushiya aai he wo sirf aapki vajah se thank you pandit ji ”

ज्योतिषाचार्य पंडित जी के द्वारा की गई पूजन दोष निवारण एवं मांगलिक कार्यो की चित्रमाला

Ujjain Kaal sarp dosh puja
Ujjain Kaal sarp dosh puja
Ujjain Kaal sarp dosh puja
Ujjain Kaal sarp dosh puja
Ujjain Kaal sarp dosh puja
Ujjain Kaal sarp dosh puja
Ujjain Kaal sarp dosh puja
Ujjain Kaal sarp dosh puja
Ujjain Kaal sarp dosh puja

ज्योतिषाचार्य पंडित जी के द्वारा की गई पूजन दोष निवारण एवं मांगलिक कार्यो की चित्रमाला

काल सर्प दोष पूजा उज्जैन

कालसर्प दोष को ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सबसे अशुभ दोषों में से एक माना गया है. राहु-केतु से निर्मित होने वाला ये दोष बहुत ही खराब माना गया है. मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उसके जीवन में छोटी-छोटी चीजों को पाने के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ता है. इसके साथ ही कुंडली में अन्य ग्रहों की अशुभ स्थिति से इस दोष का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है. ऐसा व्यक्ति परेशानियों से मुक्त नहीं हो पाता है. कोई न कोई समस्या उसे जकड़े ही रहती है.

कालसर्प दोष का कुंडली में समय रहते पता लगाकर उसका उपाय करना चाहिए. कालसर्प के बारे में मान्यता है कि ये दोष व्यक्ति को 42 वर्ष तक परेशान करता है. काल सर्प दोष निवारण की पूजा के लिए देशभर के श्रद्धालु यहां-वहां भटकते रहते हैं लेकिन सबसे आसान और सटीक पूजा मध्य प्रदेश के उज्जैन में राजाधिराज भगवान महाकाल की नगरी में होती है। यहां पूजन और महांकाल दर्शन करने मात्र से ही काल सर्प दोष का निवारण हो जाता है, इसके साथ ही आप राहु और केतु के मंत्रों का जप करें। इसके अलावा सर्प मंत्र और नाग गायत्री मंत्र का जप कर सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब कुंडली के सातों ग्रह पाप ग्रह राहु-केतु के मध्य आ जाएं तो कालसर्प दोष बनता है. इसी प्रकार से इस दोष के दो अन्य भेद भी बताए गए हैं. पहला उदित गोलार्द्ध कालसर्प दोष दूसरा अनुदित गोलाद्ध कालसर्प दोष. शास्त्रों में राहु और केतु को सर्प की भांति बताया गया है. सर्प की भांति ये व्यक्ति के भाग्य को जकड़ लेते हैं. राहु को सर्प का मुख और केतु इसकी पूंछ है. जिस व्यक्ति की कुंडली में ये दोष होता है, वो मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है. शास्त्रों में सर्प यानि सांप को काल का पर्याय माना गया है. अनंत, वासुकि, शेष पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया सभी नागों के देवता है. ऐसा माना जाता है कि जो कोई इनका प्रतिदिन स्मरण करता है. उसे नागों का भय नहीं रहता है और सदैव विजयी प्राप्त करता है.

Kaal Sarp Dosh Puja in Ujjain

Kaal sarp Dosh is considered to be one of the most concerning dosha's in one's horoscope. It is believed that those who have Kaal Sarp Dosh, they may face many problems in their life like delay marriage, career, love relations, family disputes etc. The Kaalsarp dosh is formed when Rahu and Ketu are present on one side in the horoscope and all other planets are in their midst. Kaal sarp Dosh puja in ujjain is performed to remove the harmful effects of kaal sarp dosh. It arises in a condition when all seven planets come between Ketu and Rahu. Hence, a person comes under the influence of Ketu and Rahu. And devotees believe it to be a very harmful Sarpa Dosha. Ujjain is the best place for the performance of Kalsarp Dosh puja. Ujjain is one of the 12 Jyotirlings. When all other planets are surrounded by planets Rahu and Ketu then it is known as Kaal Sarp Yog. Many adverse and unexpected incidents happen in a person’s life like fertility problems, loss in business, family-related problems, health-related problems, Marriage related problems, etc.

Kaal Sarp Dosh Puja in Ujjain

According to Vedic astrology, Rahu and Ketu are shadow planets, which are always in the seventh house from each other. When other planets respectively come between these two planets, then Kalsarp Yog is formed. In Kalsarp Yoga, presence of Trika Bhava and Rahu in the 2nd and 8th house, a person has to face special problems, but they can be made favorable by astrological remedies, Ujjain has the special achievement and fame of being more than a mole in the world. received, and at the same time it is the city of Mahakal, therefore the worship done here with a true heart is especially fruitful, along with the one who does it and gets it done, the grace of Lord Shiva's family and the blessings of other gods and goddesses are also received. This is mentioned in the scriptures.

What is Kaal Sarp Dosh?

Due to the bad deeds done in the previous birth of the person, Kaal Sarp Dosh appears as a curse in the life of the person and they become the cause of his troubles. Due to the presence of this dosha, the person remains very upset and problems of children, health, home and family, and financial problems keep on coming into the life of the person. Due to this dosha, a person has to face mental troubles and bad dreams come. In most of the dreams, the person suffering from the defect keeps on dying or snakes are seen. Kaal Sarp Dosh manifests itself due to the inauspicious effects of Rahu and Ketu. If the planets come between Rahu and Ketu in the Kundali of the natives, then this defect is called Kaal Sarp Dosh. There are various kinds of Kaal Sarp Doshas like Anant Kaal Sarp Dosh, Kulik Kaal Sarp Dosh, Sheshnaag Dosh, Vishdhar Dosha, etc. Rahu is selected in the name of Kaal. In astrology, Rahu is considered to be the mouth of a snake, and Ketu is considered to be the tail of a snake.

आपके द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्न

Kaal Sarp Dosh Puja in Ujjain


काल सर्प दोष पूजा एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है जो भारतीय ज्योतिष और हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पूजा उन व्यक्तियों के लिए आवश्यक होती है जिन्हें काल सर्प दोष की प्राकृतिक विधवा होती है। इस पूजा का आयोजन विशेष रूप से उज्जैन शहर में किया जाता है, जो मध्य प्रदेश राज्य के माध्यम से प्रसिद्ध है।
काल सर्प दोष पूजा उज्जैन का आयोजन विशेष रूप से नागदेवता मंदिर में किया जाता है। इस पूजा को नागपंचमी तिथि के आसपास आयोजित किया जाता है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि होती है। उज्जैन शहर में नागपंचमी का त्योहार विशेष धूमधाम के साथ मनाया जाता है और लोग इस दिन नाग देवता की पूजा-अर्चना करते हैं।
काल सर्प दोष पूजा में नाग मन्त्रों का जाप किया जाता है और नाग देवता की कृपा और आशीर्वाद के लिए विशेष यज्ञ किया जाता है। इस पूजा में पंडित जी काल सर्प दोष के प्रभाव से प्रभावित व्यक्ति को समझाते हैं और शुभ फल प्राप्ति के लिए उचित उपाय बताते हैं।
इस पूजा में धातु के नाग विग्रह और यंत्रों का प्रयोग किया जाता है और भक्त ध्यान करते हैं और भगवान नाग देवता के आशीर्वाद को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस पूजा के द्वारा, लोग काल सर्प दोष से मुक्ति प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में सुख और समृद्धि को प्राप्त करते हैं।
उज्जैन शहर की सुंदरता और नागदेवता मंदिर की माहात्म्य से यहां काल सर्प दोष पूजा आयोजित करना एक अनुभवनीय अनुभव होता है। इस धार्मिक आयोजन में भाग लेने से मनुष्य को न केवल आध्यात्मिक आराम मिलता है, बल्कि यह उसे नाग देवता के संग मिलने का अवसर भी प्रदान करता है।
इस प्रकार, उज्जैन शहर में काल सर्प दोष पूजा का आयोजन एक महत्वपूर्ण और धार्मिक आयोजन है जो नाग देवता की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। यह पूजा कर्ता को काल सर्प दोष से मुक्ति दिलाकर उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का साधन करती है। इसलिए, यदि आपको काल सर्प दोष की समस्या है, तो आपको उज्जैन शहर में काल सर्प दोष पूजा का आयोजन अवश्य करना चाहिए।

Kaal Sarpa Dosh is considered to be one of the most concerning dosha's in one's horoscope. It is believed that those who have Kaal Sarp Dosh, they may face many problems in their life like delay marriage, career, love relations, family disputes etc. The Kaalsarp dosh is formed when Rahu and Ketu are present on one side in the horoscope and all other planets are in their midst.

Kalsarp Dosh Nivaran puja in Ujjain is performed to remove the harmful effects of kaal sarp dosh. It arises in a condition when all seven planets come between Ketu and Rahu. Hence, a person comes under the influence of Ketu and Rahu. And devotees believe it to be a very harmful Sarpa Dosha.

Ujjain is the best place for the performance of Kaal Sarp Puja. Ujjain is one of the 12 Jyotirlings. When all other planets are surrounded by planets Rahu and Ketu then it is known as Kaal Sarp Yog. Many adverse and unexpected incidents happen in a person’s life like fertility problems, loss in business, family-related problems, health-related problems, Marriage related problems, etc.

What is Kaal Sarp Dosh?

Due to the bad deeds done in the previous birth of the person, Kaal Sarp Dosh appears as a curse in the life of the person and they become the cause of his troubles. Due to the presence of this dosha, the person remains very upset and problems of children, health, home and family, and financial problems keep on coming into the life of the person. Due to this dosha, a person has to face mental troubles and bad dreams come. In most of the dreams, the person suffering from the defect keeps on dying or snakes are seen. Kaal Sarp Dosh manifests itself due to the inauspicious effects of Rahu and Ketu. If the planets come between Rahu and Ketu in the Kundali of the natives, then this defect is called Kaal Sarp Dosh. There are various kinds of Kaal Sarp Doshas like Anant Kaal Sarp Dosh, Kulik Kaal Sarp Dosh, Sheshnaag Dosh, Vishdhar Dosha, etc. Rahu is selected in the name of Kaal. In astrology, Rahu is considered to be the mouth of a snake, and Ketu is considered to be the tail of a snake.

Kalsarp Dosh puja in Ujjain

What is Kalsarp Yoga? And why this yoga is called Kalsarpa Yoga, after studying the scriptures, we found that the presiding deity of Rahu is Kaal i.e. Yamraj and the presiding deity is Sarp, and when the rest of the planets in the horoscope come between Rahu and Ketu, then this combination only This is called Kalsarp Yoga.
In fact, when a creature is born, a wonderful combination of planets is present in its horoscope, which goes on according to time, in the same way, the speed of the changing planets comes in such a sequence in which the position of all the planets is Rahu and Ketu. It comes in the middle, in this, the mouth of the snake is towards Rahu and the tail of the snake is towards Ketu, it is believed that due to this combination, Kaal Sarp Yog comes in the person's horoscope, the meaning of Kaal Sarp in astrology It has been told that 'time' is curved like a snake, whose horoscope has this yoga, there are many ups and downs and struggle in his life. This yoga is considered inauspicious.
Rahu and Ketu are not planets even though they are planets, according to Rigveda Rahu Ketu is not a planet but an Asura, Rahu Ketu is actually a separate existence of head and torso, which belongs to Swarbhanu demon, Brahma ji gave a boon to Swarbhanu Due to which he got a place in the planetary system. The story of Swarbhanu becoming Rahu and Ketu is a part of the story of the churning of the ocean.

How is Kalsarp Yoga formed?
Suppose if Rahu is located in the first house of the horoscope and Ketu is in the seventh house, then all the remaining seven houses should be between the first to the seventh or the house before the seventh! The point to be noted here is that the degree of all the planets should be situated between the degree of Rahu and Ketu, if the degree of any planet comes out of the degree of Rahu and Ketu then the full Kalsarp Yog will not be established, this condition can be considered as partial. Will say Kalsarp! The Kalsarp formed in the horoscope is full of defects, it will depend on the inauspiciousness of Rahu and Ketu!

Why Rahu Ketu is a malefic planet
Normally the planets move in the anti-clockwise direction whereas Rahu-Ketu moves in the clockwise direction. Another feature of Rahu Ketu is that both are situated in the seventh house from each other. There is a distance of 180 degrees between the two, as we know that Rahu and Ketu are made from the part of the Swarbhanu demon and demons have always been troublesome for the creatures, so how can Rahu and Ketu be auspicious?

Remedy of Kaal sarp Dosh


Our Vedic astrology is God's gift, whatever is written in your prayer, you may not be able to avoid it by chanting, penance, worship etc. but it has the ability to negate its effect, if there is Kalsarp Dosha, then there is also a remedy for it, God. No one gets disappointed from the door of Bholenath, whosoever has Kalsarp Yog in his horoscope should perform Rudra-Abhishek daily in the month of Shravan and recite a rosary of Mahamrityunjaya Mantra daily.

What is Kaal sarp dosh Puja?


According to Vedic astrology, Rahu and Ketu are shadow planets, which are always in the seventh house from each other. When other planets respectively come between these two planets, then Kalsarp Yog is formed. In Kalsarp Yoga, presence of Trika Bhava and Rahu in the 2nd and 8th house, a person has to face special problems, but they can be made favorable by astrological remedies, Ujjain has the special achievement and fame of being more than a mole in the world. received, and at the same time it is the city of Mahakal, therefore the worship done here with a true heart is especially fruitful, along with the one who does it and gets it done, the grace of Lord Shiva's family and the blessings of other gods and goddesses are also received. This is mentioned in the scriptures.

Who should get Kaal sarp Puja done?


In whose horoscope 7 planets like Sun, Moon, Mars, Mercury, Guru, Venus and Saturn have frozen in such a way that their position comes between Rahu and Ketu, then Kalsarp Dosh is formed in that person's horoscope. And such a person should get Kalsarp Puja done.

Why should Kalsarp dosh Puja be done?


People who have constantly struggle in their life, are not getting the expected success even after working hard, have upheaval in their minds, and problems related to home, work, health, family, job, business etc. have to deal with! Sitting without any meaning troubles trouble you for the whole life, the reason for this can be Kaal Sarp Yog in your horoscope, so you must show your horoscope to a learned Brahmin because there are twelve types of Kaal Sarps found in the horoscope, these twelve types are Rahu and Ketu's horoscope is based on different positions of twelve houses, now pure Pandit ji can tell what kind of Kalsarp is in your horoscope, so contact Pandit Sunil Guru without any delay and diagnosis and solution of all types of Kalsarp Yog in Kundli Get it done

Symptoms of Kalsarp Dosh

1. Kalsarp Dosh slows down the luck of a person. Even after trying hard, there is a failure.
2. You don't get the full result of your hard work. There is no promotion in the job, while the people subordinate to it progress.
3. Business has to bear losses again and again. Or business or place of business has to be changed again and again.
4. are cheated by friends and relatives, cheated again and again. One has to be stigmatized without any reason, one has to bear the loss of useless lawsuits. The child either does not progress or the education remains incomplete. Money invested in the business for
5. children gets destroyed. If the child is well educated, then there is no good matchmaker for him.
6. give him family peace It is not achieved. Due to many struggles and worried, there is a side effect on health, bad feelings surround him, and such a person becomes subjugated by negative emotions. His positive thinking ends. Remains worried about the future,
7. There is no courage to do new work. There is no benefit even after repeated treatment. Sometimes he becomes a victim of accidents. His enemies are born spontaneously.
8. Another person receives fame for the work done by him.
9. I don't feel like doing religion and work. I don't pay attention to body purification, food and drink, and more laziness comes.
If you are Manglik or because of Manglik you are unable to get married. Even then you can contact us.
If you are suffering from fiendish pain or witchcraft, then the evil planets of Kalsarp Dosha should be pacified.
If all these problems are with you, then you call us.

Kalsarp Dosh Nivaran puja in Ujjain

Introduction to Kaal Sarp Yoga & Puja

Positions of various planets are formed in the twelve houses of the horoscope, on the basis of which yogas are formed. A situation is created in these yogas - Kaal Sarp Dosh. In Kaal Sarp Yog, Kaal i.e. Rahu's Nakshatra lord Yama i.e. Kaal and Sarp i.e. Ketu's Nakshatra lord Ashlesha's lord Sarp is formed. In this yoga, all the planets come between Rahu and Ketu and that is why these two shadow planets have an impact on your overall fortune.
Kalsarp Yoga hinders all your work, hard work does not yield any result, children suffer and enemies start dominating you.
Total of twelve Kalsarp Yogs are formed according to all the houses.
1.- Anant Kalsarp Yoga
2.- Kulik Kalsarp Yoga
3.- Vasuki Kalsarp Yoga
4.- Shankhpala Kalsarp Yoga
5.- Padma Kalsarp Yoga
6.- Mahapadma Kalsarp Yoga
7.- Sheshnag Kalsarp Yoga
8.- Toxic Kalsarp Yoga
9.- Deadly Kalsarp Yoga
10.- Takshak Kalsarp Yoga
11.- Karkotak Kalsarp Yoga
12.- Shankhnaad Kalsarp Yoga

We have given both the identification and prevention of Kaal Sarp Dosh, you can confirm the presence of Kaal Sarp Dosh by matching them in your birth chart.
2. Anant Kaal Sarp Yoga
Yoga: If Rahu is in the first house of birth and Ketu is in the seventh house and all the planets come in between then Anant Kaal Sarp Yog is formed.
Effect: There is discord in the native's house. There is always a possibility of getting cheated by family members or friends. The person remains mentally disturbed, although such people do only for their own mind.
Measure: On the day of Nag Panchami, if there is Anant Kalsarp Dosh, wear one faced, eight faced or nine faced Rudraksh. If health is not good due to this defect, then on the day of Nagpanchami, float a coin made of range (a metal) in water.
3. Kulik Kalsarp Yoga
Yoga: If Rahu is in the second house and Ketu is in the eighth house and all the planets come in between, then this Kulik Kaal Sarp Yog is formed.
Effect: Because of this, the person keeps on battling with secret diseases. Their enemies are also more, there is trouble in the family and there is bitterness in the speech.
Measure: Donate a two-colored blanket or a warm cloth if there is a Kalsarp defect called Kulik. Make a solid silver bullet and worship it and keep it with you.
4. Vasuki Kalsarp Yoga
Yoga: If Rahu is in the third house and Ketu is in the 9th house of fortune and all the planets come between them, then Vasuki Kaal Sarp Yog is formed.
Effect: Such people never get cooperation from brothers. The nature of such people is irritable. No matter how much trouble these people face, they do not tell anyone.
Measure: In case of Vasuki Kalsarp defect, keep some millet on the pillow while sleeping at night and feed it to the birds after waking up in the morning. - Wear three, eight or nine faced Rudraksh in red thread on the day of Nagpanchami.
5. Shankhpal Kalsarp Yoga
Yoga: If Rahu is in the 4th house and Ketu is in the 10th house in the birth of a person and all the planets come between them, then Shankhpala Kalsarp Yog is formed.
Effect: Such people always have estrangement from their parents and these people remain embroiled in family discord. He doesn't even get along with his friends.
Measure: To get rid of the Shankhpala Kalsarp defect, float 400 grams of whole almonds in running water. Abhishek Shivling with milk.
6. Padma Kalsarpa Yoga
Yoga: If Rahu is in the fifth house and Ketu is in the eleventh house in the birth of a person and all the planets come between them, then Padma Kalsarp Yog is formed.
Effect: Due to this there is some hindrance in the studies of the native. But in course of time that disturbance ends. They often get children late, or there is a partial obstruction in having children. The person often remains worried about the son's child.
Measure: On an auspicious time, stick a silver swastika on the main door and a snake made of metal on both sides. Recite Saraswati Chalisa daily for 40 days starting from the day of Nagpanchami when there is Padma Kalsarp defect. Donate yellow clothes to the needy and plant a basil plant.
7. Mahapadma Kalsarp Yoga Yoga: If Rahu is in the sixth house and Ketu is in the twelfth house and all the planets are situated between it and all the planets come between it, then Mahapadma Kalsarp Yog is formed.
Effect: In this yoga, the person becomes the winner of the enemy, earns profit in business from foreign countries, but due to staying outside for a long time, there is lack of peace in his house. The person of this yoga can get only one thing, wealth or happiness. Due to this yoga, the person travels a lot, he also gets success in his travels, but sometimes due to being cheated by his own people, he does not have peace in his mind.
The feeling of hopelessness wakes up.
Measure: For the diagnosis of Mahapadma Kalsarp defect, go to Hanuman temple and recite Sunderkand. On the day of Nagpanchami, feed the poor and helpless and give charity.
8. Sheshnag Kaal Sarp Yog
Yoga: If Rahu in the twelfth house and Ketu in the sixth house and all the planets come between them, then Sheshnag Kaal Sarp Yog is formed.
Effect: People use tantra-mantra more against such people. They are more likely to get mental illness. If Mars is with Rahu, then all his enemies are defeated. That means no one can harm them. Traveling abroad brings benefits, but losses are incurred in partnership business.
Measure: Recite Hanuman Chalisa 108 times and offer red cloth along with vermilion, jasmine oil and batasha on the idol of Hanuman ji on Tuesday. Donate lentils to the poor thrice in any auspicious time.
9. Poisonous Kalsarpa Yoga
Yoga: If Rahu in the eleventh house and Ketu in the fifth house of a person's horoscope are conjoining all the planets, Vishakat Kaal Sarp Yog is formed.
Effect: Such people get good education. They get a son. They are moderate, but sometimes family discord has to be faced. They can be kind to anyone at any time.
Measure: Abhishek Mahadev for 30 days in the month of Shravan. On Monday, worship the silver snake in the Shiva temple, remember the ancestors and immerse the serpent deity in flowing water or sea with devotion.
10. Deadly Kaal Sarp Yoga
Yoga: The fatal Kaal Sarp Yog is formed when Rahu in the 10th house and Ketu in the 4th house and all the planets in between come in the horoscope.
Effect: Tension remains in the married life of such people. Ancestral property is not available quickly. Such people are always worried about job or business. Debt also mounts up very quickly. The problems of heart and respiratory diseases remain.
Measure: Recite Hanuman Chalisa daily and observe fast on every Tuesday and offer vermilion dissolved in jasmine oil to Hanuman ji and offer Boondi laddoos. Recite Ganapati Atharvashirsha regularly for one year.
11. Takshak Kalsarp Yoga
Yoga: If Ketu is in the ascendant and Rahu is in the seventh house and all the planets come between them, then the Kalsarp Yog called Takshak is formed. In the classical definition of Kalsarp Yoga, this type of Anudit Yoga is not enumerated. But in practice, this type of yoga is also seen to have an inauspicious effect on the natives concerned.
Effect: The people suffering from Kalsarp Yog named Kshak cannot get the happiness of ancestral property. Either he does not get the ancestral property at all and if he gets it, he donates it to someone else or destroys it. Such people are also seen to be unsuccessful in love affairs. They have to be cheated even in secret matters. Despite the normal married life, sometimes the relationship becomes so tense that it leads to separation.
Measure: By installing Kalsarp Dosh Nivaran Yantra at home, worship it regularly. Feed barley grains to birds for one and a quarter months.
12. Karkotak Kalsarp Yoga
Yoga: If Ketu is in the second house and Rahu is in the eighth house and all the planets in between, then the name Karkotak Kalsarp Yog is formed.
Effect: Due to this yoga, some obstacles definitely come in the fortune of such people. There are difficulties in getting a job and promotion. Sometimes they even have to face the punishment of working in a lower position from a higher position.
Measure: Recite Hanuman Chalisa 108 times and offer vermilion and boondi laddus dissolved in jasmine oil to Hanuman ji while fasting on five Tuesdays. 13. Shankhchud Kalsarp Yoga
Yoga: If Ketu is in the third house and Rahu is in the ninth house and all the planets are in between, then Kalaspra yoga called Shankhchud is formed.
Effect: Many types of obstacles keep coming in the fortune of the people suffering from this yoga. Natives have to face many types of obstacles in getting professional progress, job promotion and desired success in studies. The reason behind this is that he wants to snatch the share of his own people. Plays with religion in his life.
Measure: Recite Mahamrityunjaya Kavach daily and do Rudrabhishek of Lord Shiva by observing a fast every Monday of Shravan month.
Make a snake made of silver or ashtadhatu and wear its ring on the middle finger of the hand. On an auspicious time, stick a silver swastika on the main door of your house and a snake made of metal on both sides.

Kaal Sarp Dosh: क्या होता है कालसर्प दोष?


व्यक्ति के जन्मांग चक्र में राहु और केतु की स्थिति आमने सामने की होती है। दोनों 180 डिग्री पर रहते हैं। यदि बाकी सात ग्रह राहु केतु के एक तरफ हो जाएं और दूसरी ओर कोई ग्रह न रहे, तो ऐसी स्थिति में कालसर्प योग बनता है। इसे ही कालसर्प दोष कहा जाता है। हालांकि कालसर्प योग का निर्धारण करते समय अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए। सनातन धर्म में किसी व्यक्ति की कुडंली देखकर ग्रहों का आकलन किया जाता है औऱ जातक की जिंदगी में दोष और योग की गणना की जाती है। कुंडली में कालसर्प दोष होने पर विवाह, संतान, सम्मान, पैसा, बिजनेस आदि संबधी कई समस्याओं की आशंका बनती है।
क्या है काल सर्प योग (what is kaal sarp dosh) किसी जातक की कुंडली में जब राहु एवं केतु सदा वक्री (उल्टी चाल) रहते हैं और बाकी के सभी ग्रह राहु एवं केतु के बीच में आ जाते हैं तो व्यक्ति कालसर्प दोष से पीड़ित माना जाता है। हर राशि की कुंडली में काल सर्प दोष का प्रभाव अलग अलग तरीके से पड़ता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिस इंसान की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उसे जिंदगी में किसी न किसी परेशानी का सामना करना पड़ता है. अधिक मेहनत करने के बावजूद रिजल्ट नहीं मिलता है. दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है. अगर जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु-केतु के बीच में हों तो कालसर्प योग बनता है.
संकट को बढ़ाता है अचानक
कई बार सातों ग्रह राहु-केतु के मध्य न आकर एक या दो ग्रह राहु-केतु के बीच आ जाते हैं तो आंशिक कालसर्प योग माना जाता है. कालसर्प योग वाले जातकों के लिए राहु या केतु की महादशा, अंतर्दशा या खराब गोचर उनके संकट को अचानक बढ़ा देता है.

पूर्वजन्मों के अनुसार फल
अनुभव से ये भी देखा गया है कि कालसर्प दोष व्यक्ति से इतना अधिक मेहनत और संघर्ष करवा देता है कि वो तपकर खरे सोने की तरह निखर जाता है. आखिरकार उसे प्रसिद्धि, सफलता और धन मिल ही जाता है. एक और बात ये है कि राहु को कार्मिक ग्रह माना जाता है वो व्यक्ति को उसके पूर्वजन्मों के अनुसार फल देता है.

शुभफल का भी होता है कारक
अगर राहु अपने नक्षत्र आर्द्रा, स्वाती और शतभिषा में है और अपनी उच्च राशि वृष. मूल त्रिकोण राशि कर्क या स्वराशि कन्या में हो तो व्यक्ति के पूर्वजन्म के फल शुभ होते हैं. इसी तरह अगर केतु अपने नक्षत्र अश्विनी, मघा और मूल या अपनी उच्च राशि वृश्चिक, मूल त्रिकोण राशि मिथुन या स्वराशि धनु या मीन में हो तो शुभफल कारक होता है.

काल सर्प योग के 12 प्रकार होते है। हर दोष का अलग-अलग प्रभाव और इससे राहत पाने के लिए विशेष ज्योतिषीय उपाय होते है। इन उपायों को अपनाकर काल सर्प दोष का प्रभाव कम किया जा सकता है।

चलिए पहले जानते हैं 12 तरह के काल सर्प दोषों के बारे में -
अनंत कालसर्प दोष
कुंडली में राहु लग्न में हो और केतु सप्तम भाव में स्थित हो तथा सभी अन्य ग्रह सप्तम से द्वादश, एकादशी, दशम, नवम, अष्टम और सप्तम में स्थित हो तो यह अनंत कालसर्प योग कहलाता है। ऐसे जातकों के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है।

कुलिक कालसर्प दोष
राहु द्वितीय भाव में तथा केतु अष्टम भाव में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। हु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। जातक को अपयश का भी भागी बनना पड़ता है। इस योग की वजह से जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है और उसका वैवाहिक जीवन भी सामान्य रहता है। लेकिन आर्थिक परेशानियों के कारण आपके दापत्यं जीवन में खलबली मची रहती है।

शेषनाग कालसर्प दोष
कुंडली में राहु द्वादश स्थान में तथा केतु छठे स्थान में हो तथा शेष 7 ग्रह नक्षत्र चतुर्थ तृतीय और प्रथम स्थान में हो तो शेषनाग कालसर्प दोष का निर्माण होता है। शेषनाग कालसर्प योग बनता है। शास्त्रों के अनुासर व्यवहार में लोग इस योग संबंधी बाधाओं से पीड़ित अवश्य देखे जाते हैं। इस योग से पीड़ित जातकों की मनोकामनाएं हमेशा विलंब से ही पूरी होती हैं। ऐसे जातकों को अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए अपने जन्मस्थान से दूर जाना पड़ता है और शत्रु षड़यंत्रों से उसे हमेशा वाद-विवाद व मुकदमे बाजी में फंसे रहना पड़ता है।

विषधर कालसर्प दोष
केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। इस दोष के चलते व्यक्ति धन की हानि से गुजरता है। जातक को ज्ञानार्जन करने में आंशिक व्यवधान उपस्थित होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने में थोड़ी बहुत बाधा आती है एवं स्मरण शक्ति का हमेशा ह्रास होता है। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हुए भी आंशिक नुकसान उठाना पड़ता है। चाचा, चचेरे भाइयों से कभी-कभी झगड़ा- झंझट भी हो जाता है। बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है।

वासुकी कालसर्प दोष
राहु तृतीय भाव में स्थित है तथा केतु नवम भाव में स्थित होकर जिस योग का निर्माण करते हैं तो वह दोष वासुकी कालसर्प दोष कहलाता है। वह भाई-बहनों से भी परेशान रहता है। अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी आपसी खींचतान बनी रहती है। रिश्तेदार एवं मित्रगण आपको हमेशा धोखा देते रहते हैं। घर में हमेशा कलह रहता है। साथ ही आर्थिक स्थिति भी असामान्य रहती है। अर्थोपार्जन के लिए जातक को विशेष संघर्ष करना पड़ता है।

शंखपाल कालसर्प दोष
राहु चतुर्थ भाव में तथा केतु दशम भाव में स्थित होकर अन्‍य ग्रहों के साथ जो निर्माण करते हैं तो वह कालसर्प दोष शंखपाल के नाम से जाना जाता है। इससे घर- संपत्ति संबंधी थोड़ी बहुत कठिनाइयां आती हैं। जिसके कारण जातक को कभी-कभी तनाव में आ जाता है। जातक को माता से कोई, न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण जातक समय-समय पर मानसिक संतुलन खोया रहता है।

पद्य कालसर्प दोष
चतुर्थ स्‍थान पर दिए दोष के ऊपर का है पद्य कालसर्प दोष इसमें राहु पंचम भाव में तथा केतु एकादश भाव में साथ में एकादशी पंचांग 8 भाव में स्थित हो तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। ज्ञान प्राप्त करने पर थोड़ी समस्या उच्पन्न होती है। साथ ही जातक को संतान प्राय: विलंब से प्राप्त होती है, या संतान होने में आंशिक रूप से व्यवधान उपस्थित होता है। जातक को पुत्र संतान की प्राय: चिंता बनी रहती है। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी समस्या भी हो सकती है।

महापद्म कालसर्प दोष
राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक शत्रु विजेता होता है, विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है लेकिन बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग के जातक को एक ही चीज मिल सकती है धन या सुख। इस योग के कारण जातक यात्रा बहुत करता है।

तक्षक कालसर्प दोष
जन्मपत्रिका के अनुसार राहु सप्तम भाव में तथा केतु लग्न में स्थित हो तो ऐसा कालसर्प दोष तक्षक कालसर्प दोष के नाम से जाना जाता है। इस कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्ति का सुख नहीं मिल पाता। ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं। गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है जिससे कि आप अलग होने की कोसिस करते है।

कर्कोटक कालसर्प दोष
केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातकों के भाग्योदय में इस योग की वजह से कुछ रुकावटें अवश्य आती हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। इस जातकों को संपत्ति भी आते-आते रह जाती है। कोई भी काम ठीक ढंग से नहीं हो पाता है। साथ ही आपको अधिक परिश्र्म करने के बाद भी लाभ नहीं मिल पाता है।

शंखचूड़ कालसर्प दोष
सर्प दोष जन्मपत्रिका में केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में हो तो शंखचूड़ नामक कालसर्प योग बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं। व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में प्रोन्नति तथा पढ़ाई-लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है क्योंकि वह अपनो का भी हिस्सा छिनना चाहता है। अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है।

घातक कालसर्प दोष
कुंडली में दशम भाव में स्थित राहु और चतुर्थ भाव में स्थित केतु जब कालसर्प योग का र्निमाण करता है तो ऐसा कालसर्प दोष घातक कालसर्प दोष कहलाता है। इस योग में उत्पन्न जातक यदि मां की सेवा करे तो उत्तम घर व सुख की प्राप्ति होता है। जातक हमेशा जीवन पर्यन्त सुख के लिए प्रयत्नशील रहता है उसके पास कितना ही सुख आ जाए उसका जी नहीं भरता है।

ये तो हुई 12 प्रकार के काल सर्प दोषों की जानकारी। इनके विनाशकारी प्रभाव जातक को जीवन में तरह तरह की परेशानियों से दो चार करवाते हैं।

कालसर्प पूजा क्यों करवानी चाहिए ?
जिन व्यक्तियों के जीवन में निरंतर संघर्ध बना रहता हो, कठिन परिश्रम करने पर भी आशातीत सफलता न मिल रही हो, मन में उथल - पुथल रहती हो, जीवन भर घर, बहार, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी मतलब की मुसीबते जीवन भर परेशान करती है, इसका कारण आपकी कुंडली का कालसर्प योग हो सकता है, इसलिए अपनी कुंडली किसी विद्वान ब्राह्मण को अवश्य दिखाए क्युकी कुंडली में बारह प्रकार के काल सर्प पाए जाते है, यह बारह प्रकार राहू और केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति पर आधारित होती है, अब आपकी कुंडली में कैसा कालसर्प है ये विशुध्द पंडित जी बता सकते है, इसलिए अविलम्ब संपर्क करिये ज्योतिषाचार्य पंडित जी से और कुंडली के सभी प्रकार के कालसर्प योग का निदान एवं निराकरण कराये।

मंगल दोष क्या है?
कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं, इन्हीं दोषों में से एक है मांगलिक दोष, यह दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मांगलिक कहलाता है जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 9, 12वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मांगलिक होता है।
आज भी जब किसी स्त्री या पुरुष के विवाह के लिए कुंडली मिलान किया जाता है तो सबसे पहले देखा जाता है कि वह मांगलिक है या नहीं, ज्योतिष के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मांगलिक है तो उसकी शादी किसी मांगलिक से ही की जानी चाहिए, इसके पीछे धारणाएं बनाई गई हैं।
वैदिक ज्योतिष में मंगल देव हमारे रिश्तों पर, मस्तिष्क पर आधिपत्य रखते हैं। नाड़ी ज्योतिष के अनुसार महिला जातक की पत्रिका में मंगल देव पति का प्रतिनिधि करते हैं। प्रत्येक पत्रिका के लिए मंगल की स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। मंगल अर्थात कुज के द्वारा ही बनता है मंगल दोष।
जब भी किसी जातक/जातिका की पत्रिका में मंगल विशेष भावों से जुड़े हों या उस पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं तो वह कुज दोष से प्रभावित होगा। कुज दोष का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव विवाह, वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। विवाह में बाधा, वैवाहिक जीवन में कलह आदि इसके सामान्य प्रभाव है।
कभी-कभी इसका प्रभाव इतना प्रबल होता है कि वैवाहिक जीवन में विच्छेदन की स्थिति भी आ जाती है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित हैं मांगलिक व्यक्ति का विवाह समान भाव मांगलिक व्यक्ति से ही होना उत्तम होता है। जिससे इस दोष का शमन होता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो समस्याओ का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिष के अनुसार मांगलिक लोगों पर मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव होता है, यदि मांगलिक शुभ हो तो वह मांगलिक लोगों को मालमाल बना देता है। मांगलिक व्यक्ति अपने जीवनसाथी से प्रेम-प्रसंग के संबंध में कुछ विशेष इच्छाएं रखते हैं, जिन्हें कोई मांगलिक जीवनसाथी ही पूरा कर सकता है इसी वजह से मंगली लोगों का विवाह किसी मंगली से ही किया जाता है।

मांगलिक दोष या कुज दोष क्या है?
यदि किसी पत्रिका के लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में यदि मंगल स्थित हो तो कुंडली में मंगल दोष होता है।

कौन होते हैं मांगलिक?
कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं, इन्हीं दोषों में से एक है मांगलिक दोष, यह दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मांगलिक कहलाता है जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 9, 12वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मांगलिक होता है।

मांगलिक लोगों की खास बातें
मांगलिक होने का विशेष गुण यह होता है कि मांगलिक कुंडली वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूर्णनिष्ठा से निभाता है। कठिन से कठिन कार्य वह समय से पूर्व ही कर लेते हैं, नेतृत्व की क्षमता, उनमें जन्मजात होती है, ये लोग जल्दी किसी से घुलते-मिलते नहीं परन्तु जब मिलते हैं तो पूर्णतः संबंध को निभाते हैं, अति महत्वकांक्षी होने से इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता है परन्तु यह बहुत दयालु, क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते हैं, गलत के आगे झुकना इनको पसंद नहीं होता और खुद भी गलती नहीं करते।
ये लोग उच्च पद, व्यवसायी, अभिभावक, तांत्रिक, राजनीतिज्ञ, डॉक्टर, इंजीनियर सभी क्षेत्रों में विशेष योग्यता प्राप्त करते हैं।

क्यों नहीं मिलने चाहिए 36 गुण?
कुंडली के हिसाब से शादी करने वाले लोग लड़के और लड़की का गुण मिलान करते हैं। कुल 36 गुण होते हैं और इसमें से जितने गुण मिल जाएं उतना अच्छा माना जाता है। शादी के लिए कम से कम 18 गुण मिलना जरूरी होता है इससे कम गुण मिलना या 36 गुण मिलना सही नहीं माना जाता क्योंकि भगवान राम और माता सीता के 36 गुण मिले थे। लेकिन शादी के बाद सीताजी को रामजी का साथ बहुत कम मिला, उनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा, इसलिए मेरा मानना है कि अति हमेशा बहुत बुरी होती है चाहे वह गुण का मिलना ही क्यों न हो।

क्या मांगलिक की शादी गैर मांगलिक से हो सकती है?
मांगलिक लड़के और लड़की की शादी को लेकर समाज में बहुत सारे अंधविश्वास फैले हुए हैं। इसलिए लड़का या लड़की अगर मांगलिक हो तो माता-पिता के लिए उनकी शादी परेशानी का सबब बन जाती है। लेकिन आचार्य सचिन साबेसाची का कहना है कि लड़का और लड़की अगर मांगलिक हैं तो राहु, केतु और शनि की स्थिति पर निर्भर करता है कि शादी गैर मांगलिक से होगी या नहीं। लड़का अगर मांगलिक है तो उसकी शादी उस गैर मांगलिक लड़की से हो सकती है जिसके राहु, केतु और शनि दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें और बाहरवें भाव में बैठे हों, लेकिन अगर राहु, केतू और शनि इन भावों में नहीं हैं तो उसकी शादी मांगलिक से नहीं हो सकती। यूं तो ऐसे जातक का उपाय तो कुछ नहीं है लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि 28 साल के बाद मंगल का प्रभाव खत्म हो जाता है लेकिन मेरे गुरु कहते हैं कि यह ताउम्र रहता है।

मंगल मेष एवं वृश्चिक राशि के स्वामी हैं, इसलिए जिन व्यक्तिओ बहुत क्रोध आता है या मन ज्यादा अशांत रहता है उसका कारण मंगल ग्रह की उग्रता माना जाता और यह मंगल भात पूजा कुंडली में विद्धमान मंगल ग्रह की उग्रता को कम करने के लिए की जाती है, यह पूजा उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर में नित्य होती है, जिसका पुण्य लाभ समस्त भक्तजन प्राप्त करते है।

मंगल भात पूजा किसके द्वारा करवाई जानी चाहिए ?
मंगल भात पूजा पूरी तरह से आपके जीवन से जुडी हुयी है इसलिए इस पूजा को विशिस्ट, सात्विक और विद्वान ब्राह्मण द्वारा गंभीरता पूर्वक करवानी चाहिए, पंडित श्री रमाकांत चौबे जी को इस पूजा का महत्त्व और विधि भली भांति से ज्ञात है और अभी तक इनके द्वारा की गयी पूजा गयी पूजा भगवान शिव की कृपा से सदैव सफल हुयी है।

मंगल भात पूजा क्यों करवानी चाहिए?
कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है उसी को ज्योतिष की भाषा में मंगल दोष कहते है, मंगल दोष कुंडली के किसी भी घर में स्थित अशुभ मंगल के द्वारा बनाए जाने वाले दोष को कहते हैं, जो कुंडली में अपनी स्थिति और बल के चलते जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, तो वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ अवश्य करवाए, जैसा की उज्जैन को पुराणों में मंगल की जननी कहा जाता है इस लिए मंगल दोष को निवारण के लिए मंगल भात पूजा को उज्जैन में ही करवाने से अभीस्ट पुण्य एवं फल प्राप्त होता है.

मंगल भात पूजा किसको करवानी चाहिए ?
वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक के जन्म चक्र के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में मंगल हो तो ऐसी स्थिति में पैदा हुआ जातक मांगलिक कहा जाता है अथवा इसी को मंगल दोष भी कहते है. यह स्थिति विवाह के लिए अत्यंत अशुभ मानी जाती है, ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में एक मांगलिक को दूसरे मांगलिक से ही विवाह करना चाहिए. अर्थात यदि वर और वधु दोनों ही मांगलिक होते है तो दोनों के मंगल दोष एक दूसरे से के योग से समाप्त हो जाते है. किन्तु अगर ऐसा किसी कारण से ज्ञात नहीं हो पाता है, और किसी एक की कुंडली में मंगल दोष हो तो मंगल भात पूजा अवस्य करवा लेनी चाहिए. मंगल दोष एक ऐसी विचित्र स्थिति है, जो जिस किसी भी जातक की कुंडली में बन जाये तो उसे बड़ी ही अजीबोगरीब परिस्थिति का सामना करना पड़ता है जैसे संबंधो में तनाव व बिखराव, घर में कोई अनहोनी व अप्रिय घटना, कार्य में बेवजह बाधा और असुविधा तथा किसी भी प्रकार की क्षति और दंपत्ति की असामायिक मृत्यु का कारण मांगलिक दोष को माना जाता है. मूल रूप से मंगल की प्रकृति के अनुसार ऐसा ग्रह योग हानिकारक प्रभाव दिखाता है, आपको वैदिक पूजा-प्रक्रिया के द्वारा इसकी भीषणता को नियंत्रित करने के लिए उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर में यह पूजा करवानी चाहिए।

मंगल भात पूजा की कथा:-
शास्त्रों में मंगल को भगवान शिव के शरीर से क्रोध के कारण निकले पशीने से उत्पन्न माना जाता है, इसकी कथा इस प्रकार से है, भगवान शिव वरदान देने में बहुत ही उदार है, जिसने जो माँगा उसे वो दे दिया लेकिन जब कोई उनके दिए वरदान का दुरूपयोग करता है जो प्राणिओ के कल्याण के भगवान् शिव स्वयं उसका संघार भी करते है, स्कन्ध पुराण के अनुसार उज्जैन नगरी में अंधकासुर नामक दैत्य ने भगवान् शिव की अडिग तपस्या की और ये वरदान प्राप्त किया कि मेरा रक्त भूमि पर गिरे तो मेरे जैसे ही दैत्य उत्पन्न हों जाए। भगवान शिव तो है ही अवढरदानी दे दिया वरदान, परन्तु इस वरदान से अंधकासुर ने पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मचा दी..सभी देवता, ऋषियों, मुनियो और मनुष्यो का वध करना शुरू कर दिया…सभी देवगढ़, ऋषि-मुनि एवं मनुष्य भगवान् शिव के पास गए और सभी ने ये प्रार्थना की- आप ने अंधकासुर को जो वरदान दिया है, उसका निवारण करे, इसके बाद भगवान शिव जी ने स्वयं अंधकासुर से युद्ध करने और उसका वध का निर्णय लिया । भगवान् शिव और अंधकासुर के बीच आकाश में भीषण युद्ध कई वर्षों तक चला ।

युद्ध करते समय भगवान् शिव के ललाट से पसीने कि एक बून्द भूमि के गर्भ पर गिरी, वह बून्द पृथ्वी पर मंगलनाथ की भूमि पर गिरी जिससे भूमि के गर्भ से शिव पिंडी की उत्पत्ति हुई और इसी को बाद में मंगलनाथ के नाम से प्रसिद्दि प्राप्त हुयी। युद्ध के समय भगवान् शिव का त्रिसूल अंधकासुर को लगा, तब जो रक्त की बुँदे आकाश में से भूमि के गर्भ पर शिव पुत्र भगवान् मंगल पर गिरने लगी, तो भगवान् मंगल अंगार स्वरूप के हो गए । अंगार स्वरूप के होने से रक्त की बूँदें भस्म हो गयीं और भगवान् शिव के द्वारा अंधकासुर का वध हो गया । भगवान् शिव मंगलनाथ से प्रसन्न होकर २१ विभागों के अधिपति एवं नवग्रहों में से एक गृह की उपाधि दी ।

शिव पुत्र मंगल उग्र अंगारक स्वभाव के हो गए.. तब ब्रम्हाजी, ऋषियों, मुनियो, देवताओ एवं मनुष्यों ने सर्व प्रथम मंगल की उग्रता की शांति के लिए दही और भात का लेपन किया, दही और भात दोनो ही पदार्थ ठन्डे होते है, जिससे मंगल ग्रह की उग्रता की शांति होती हैं। इसी कारण जिन प्राणिओ की कुंडली में मंगल ग्रह अतिउग्र होता है उनको मंगल भात पूजा करवानी चाहिए, इस पूजा का उज्जैन में करवाने के कारण यह अत्यंत लाभदायी और शुभ फलदायी होती है। इसी कारण मंगल गृह को अंगारक एवं कुजनाम के नाम से भी जाने जाते है ।

पुरुषों के विवाह में आ रहे विलम्ब या अन्य दोषो को दूर करने के लिए किसी कन्या से विवाह से पूर्व उस पुरुष का विवाह सूर्य पुत्री जो की अर्क वृक्ष के रूप में विद्धमान है से करवा कर विवाह में आ रहे समस्त प्रकार के दोषो से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, इसी विवाह पद्द्ति को अर्क विवाह कहा जाता है।

अर्क विवाह किन पुरुषों के होने चाहिए?
जिन पुरुषो की कुंडली में सप्तम भाव अथवा बारहवां भाव क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो अथवा शुक्र, सूर्य, सप्तमेष अथवा द्वादशेष, शनि से आक्रांत हों। अथवा मंगलदोष हो अर्थात वर की कुंडली में १,२,४,७,८,१२ इन भावों में मंगल हो तो यह वैवाहिक विलंब, बाधा एवं वैवाहिक सुखों में कमी करने वाला योग होता है, ऐसे पुरुषो के माता पिता या अन्य स्नेही सम्बन्धी जनको को उस वर का विवाह पूर्व अर्क विवाह करवाना चाहिए।

कुंभ विवाह
कन्या के विवाह में आ रहे विलम्ब या अन्य दोषो को दूर करने के लिए किसी पुरुष से विवाह से पूर्व उस कन्या का विवाह कुम्भ से करवाते है क्युकी कुम्ब में भगवान विष्णु विद्धमान है से करवा कर विवाह में आ रहे समस्त प्रकार के दोषो से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, इसी विवाह पद्द्ति को कुंभ विवाह कहा जाता है।

कुम्भ विवाह किन कन्याओ का होना चाहिए
लड़की की कुंडली में सप्तम भाव अथवा बारहवां भाव क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो अथवा शुक्र, सूर्य, सप्तमेष अथवा द्वादशेष, शनि से आक्रांत हों। अथवा मंगलदोष हो अर्थात कन्या की कुंडली में १,२,४,७,८,१२ इन भावों में मंगल हो तो यह वैवाहिक विलंब, बाधा एवं वैवाहिक सुखों में कमी करने वाला योग होता है, ऐसी कन्याओ के माता पिता या अन्य स्नेही सम्बन्धी जनको को उस कन्या का विवाह पूर्व कुम्भ विवाह अवश्य करवाना चाहिए।

कुंभ एवं अर्क विवाह की आवश्यकता
मंगलदोष एक प्रमुख दोष माना जाता रहा है हमारे कुंडली के दोषों में, आजकलके शादी-ब्याह में इसकी प्रमुखता देखि जा रही है, ऐसा माना जाता रहा है की मांगलिक दोषयुक्त कुंडली का मिलान मांगलिक-दोषयुक्त कुंडली से ही बैठना चाहिए या ऐसे कहना चाहिए की मांगलिक वर की शादी मांगलिक वधु से होनी चाहिए पर ये कुछ मायनो में गलत है कई बार ऐसा करने से ये दोष दुगना हो जाता है जिसके फलस्वरूप वर-वधु का जीवन कष्टमय हो जाता है लेकिन अगर वर-वधु की आयु ३० वर्ष से अधिक हो या जिस स्थान पर वर या वधु का मंगल स्थित हो उसी स्थान पर दुसरे के कुंडली में शनि-राहु-केतु या सूर्य हो तो भी मंगल-दोष विचारनीय नहीं रह जाता अगर दूसरी कुंडली मंगल-दोषयुक्त न भी हो तो. या वर-वधु के गुण-मिलान में गुंणों की संख्या ३० से उपर आती है तो भी मंगल-दोष विचारनीय नहीं रह जाता, परन्तु अगर ये सब किसी की कुंडली में नहीं है तो नव दम्पति के सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए कन्या एवं वर का कुंभ एवं अर्क विवाह करवाना अनिवार्य सा बन जाता है।

वर-वधु दोनों की कुंडलियों में मांगलिक- दोष हो तो ?
वर-वधु दोनों की कुण्डलियाँ मांगलिक- दोषयुक्त हो पर किसी एक का मंगल उ़च्च का और दुसरे का नीच का हो तो भी विवाह नहीं होना चाहिए या दोनों की कुण्डलियाँ मांगलिक- दोषयुक्त न हो पर किसी एक का मंगल 29 डिग्री से ० डिग्री के बीच का हो तो भी मंगल-दोष बहुत हद्द तक प्रभावहीन हो जाता है अतः विवाह के समय इन बातों को विचार में रख के हम आने वाले भविष्य को सुखमय बना सकते है, इस विषय में समस्त जानकारी के लिए हमें सम्पर्क करें, हमे आपके सुखमय जीवन के अवश्य प्रयास करेंगे।

भक्तो के लिए भगवान शिव के अनंत नाम है उन्ही नामों में से एक प्रसिद्ध नाम है 'रूद्र'। और भगवान शिव का रूद्र रूप का अभिषेक ही रुद्राभिषेक कहलाता है, इस पूजन में शिवलिंग को पवित्र स्नान कराकर पूजा और अर्चना की जाती है। यह हिंदू धर्म में पूजन के शक्तिशाली रूपों में से एक है और ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव अत्यंत उदार भगवान है और बहुत ही आसानी से भक्तो से प्रसन्न हो जाते हैं।

रुद्राभिषेक कब किया जाता है ?
विधान के अनुसार रुद्राभिषेक शिवरात्रि माह में किया जाता है। लेकिन, श्रावण (जुलाई-अगस्त) का कोई भी दिन रूद्राभिषेक के लिए आदर्श रूप से अनुकूल हैं। इस पूजा का समस्त सार यजुर्वेद में वर्णित श्री रुद्रम के पवित्र मंत्र का जाप और शिवलिंग को कई सामग्रियों के द्वारा पवित्र स्नान देना है जिसमें पंचमृत या फल शहद आदि शामिल हैं।

रुद्राभिषेक क्यों करवाना चाहिए ?
संसार का हर प्राणी सुख, समृद्दि, यश, धन, वैभव और मानसिक शांति चाहता है, लेकिन क्या ये सभी को प्राप्त हो पाते है, और ऐसा भी नहीं है की ये वास्तव में अप्राप्य हो, रुद्राभिषेक के द्वारा भगवान् शिव के भक्तों को सुख समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता और साथ ही कई जन्मों के किये गए जाने अनजाने पापों का प्रभाव भी नष्ट हो जाते हैं।

रुद्राभिषेक किसको करवाना चाहिए ?
जो भी प्राणी देविक, दैहिक और भौतिक तापों से पीड़ित है, जन्मकुंडली में शनि से पीड़ित है, अथवा जीवन में प्रगति के मार्ग पर चलते हुए व्यर्थ की समस्याओं और कठिनाइयों से पीड़ित है, उस व्यक्ति को इन सबसे मुक्ति प्राप्त करने के लिए भगवन शिव की शरण में जाना चाहिए और इसका सबसे उत्तम और अनुकरणीय मार्ग है रुद्राभिषेक, धर्मग्रंथों का कहना है कि रुद्राभिषेक किसी भी शुभ कर्म को करने से पहले अवस्य करवाना चाहिए, जिससे समस्त दुष्ट एवं अनिष्टकारी शक्तिया भगवन शिव की कृपा से शांत हो जाए।

रुद्राभिषेक के प्रकार:
* हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें|
* भगवान शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दूध से अभिषेक करें|
* अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें|
* ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें|
* किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें|
* तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए भगवान शिव का काले तिल से अभिषेक करें|
* संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु भगवान शिव का शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें|
* रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए भगवान शिव का घी व शहद से अभिषेक करें|
* आकर्षक व्यक्तित्व प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर हल्दी से अभिषेक करें|


रुद्राभिषेक के समय उपस्थित लोगों को क्या करना चाहिए?
रुद्र अभिषेक का आयोजन सिद्ध पुजारियों या प्रकांड विद्वानों द्वारा वैदिक पध्दति से किया जाता है। इसमें शिवलिंग को उत्तर दिशा में रखते हैं। उपस्थित भक्त शिवलिंग के निकट पूर्व दिशा की ओर मुंख करके बैठते हैं। अभिषेक का प्रारम्भ गंगा जल से होता है और गंगा जल के साथ अन्य तरह के अभिषेक के बीच शिवलिंग को स्नान कराने के बाद अभिषेक के लिए आवश्यक सभी सामग्री शिवलिंग पर अर्पण की जाती है। अंत में, भगवान को विशेष व्यंजन अर्पित किए जाते हैं और आरती की जाती है। अभिषेक से एकत्रित गंगा जल को भक्तों पर छिड़का जाता है और पीने के लिए भी दिया जाता है, यह पवित्र जल सभी पाप और बीमारियां को दूर कर देता हैं। रूद्राभिषेक की संपूर्ण प्रक्रिया में उपस्थित भक्तो को मन ही मन या धीरे धीरे रूद्राम या 'ओम नम: शिवाय' का जाप किया जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र वेदों में सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद का एक श्लोक है जो की भगवान शिव के मृत्युंजय स्वरुप को समर्पित है, यह मन्त्र तीन स्वरूपों में है, (1) लघु मृत्युंजय मंत्र (2) महा मृत्युंजय मंत्र एवं (3) संपुटयुक्त महा मृत्युंजय मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र जप सुबह १२ बजे से पहले होना चाहिए,क्योंकि ऐसी प्राचीन मान्यता है की दोपहर १२ बजे के बाद महामृत्युंजय मंत्र के जप का उतना फल नहीं प्राप्त होता है जितना की करने वाले को प्राप्त होना चाहिए।


महा मृत्युंजय मंत्र के प्रत्येक अक्षर का अर्थ
!!ॐ त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म। उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात् !!
त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों वाला यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय सुगंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधित पुष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता वर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है,स्वास्थ्य, धन, सुख में वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली उर्वारुकम= ककड़ी इव= जैसे, इस तरह बंधना= तना मृत्युर = मृत्यु से मुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें मा= न अमृतात= अमरता, मोक्ष

महा मृत्युंजय मंत्र का अर्थ
समस्त संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।|| इस मंत्र का विस्तृत रूप से अर्थ ||हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं,उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए.जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.

महा मृत्युंजय मंत्र जप विधान
महा मृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण सवा लाख का है और लघु मृत्युंजय मंत्र का 11 लाख है. महा मृत्युंजय मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला पर सोमवार से शुरू किया जाता है. महा मृत्युंजय मंत्र को अपने घर पर महामृत्युंजय यन्त्र या किसी भी शिवलिंग का पूजन कर शुरू किया जा सकता या फिर सुबह के समय किसी शिवमंदिर में जाकर शिवलिंग का पूजन करें और फिर घर आकर घी का दीपक जलाकर महा मृत्युंजय मंत्र का ११ माला जप कम से कम ९० दिन तक रोज करें या एक लाख पूरा होने तक जप करते रहें. अंत में हवन हो सके तो श्रेष्ठ अन्यथा २५ हजार जप और करें. इतना जप पूर्ण मनोयोग से शुद्ध उच्चरण के साथ निरंतर नहीं कर सकते इसलिए इस महामंत्र को आप विशुद्ध अंतःकरण वाले ब्राह्मण के द्वारा करवा कर समान पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते है।

महामृत्युंजय मंत्र जप किसे करवाना चाहिए
जिन प्राणियों को ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, रोग, जमीन-जायदाद का विवाद, हानि की सम्भावना या धन-हानि हो रही हो, वर-वधू के मेलापक दोष, घर में कलह, सजा का भय या सजा होने पर, कोई धार्मिक अपराध होने पर और अपने समस्त पापों के नाश के लिए महामृत्युंजय या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया या कराया जा सकता है.

महामृत्युंजय मंत्र का क्या लाभ है ?
महामृत्युंजय मंत्र शोक, मृत्यु भय, अनिश्चता, रोग, दोष का प्रभाव कम करने में, पापों का सर्वनाश करने की क्षमता रखता है.महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना या करवाना सबके लिए और सदैव मंगलकारी है,परन्तु ज्यादातर तो यही देखने में आता है कि परिवार में किसी को असाध्य रोग होने पर अथवा जब किसी बड़ी बीमारी से उसके बचने की सम्भावना बहुत कम होती है, तब लोग इस मंत्र का जप अनुष्ठान कराते हैं.

महामृत्युंजय मंत्र का जाप के प्रति गलत धारणा
बहुत से पंडित महामृत्युंजय मंत्र के बारे में सिर्फ ये बताते है की इसके जाप से रोगी स्वस्थ हो जायेगा, लेकिन वास्तव में ये अर्ध सत्य है, जिससे महामृत्युंजय मंत्र का जाप अनुष्ठान होने के बाद यदि रोगी जीवित नहीं बचता है तो लोग निराश होकर पछताने लगे हैं कि बेकार ही इतना खर्च किया. परन्तु वास्तव में इस मंत्र का मूल अर्थ ही यही है कि हे महादेव..या तो रोगी को ठीक कर दो या तो फिर उसे जीवन मरण के बंधनों से मुक्त कर दो. अत: रोगी के ठीक न होने पर भी पछताना या कोसना नहीं चाहिए, जगत के स्वामी बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती आप सबकी मनोकामना पूर्ण करें.

वर्तमान समय में मनुष्य के जीवन में उसके घर, कार्यालय एवं व्यावसायिक प्रतिस्थान का उसके जीवन में विशेष महत्त्व है, लेकिन कई बार स्थान के आभाव या दिशाओ की जानकारी न होने के कारण कुछ निर्माण देखने में बहुत सुन्दर प्रतीत होते है लेकिन वह किसी किसी के लिए लाभकारी सिद्द नहीं होते है, इस प्रकार की परिस्थिति का सबसे बड़ा कारण निवास करने वाले व्यक्ति का ग्रहो का भवन के वास्तु के साथ सामंजस्य न हो पाना, मह्त्वपूर्ण कार्यो जैसे अनुष्ठान, भूमि पूजन, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, द्वार स्थापन व गृह प्रवेश आदि अवसरों पर वास्तु देव पूजा का विधान है। घर के किसी भी भाग को तोड़ कर दोबारा बनाने से वास्तु भंग दोष लग जाता है।

कैसे जानेगे आपके स्थान पर वास्तुदोष है?
आप अगर ऐसा महसूस कर रहे है की घर में अकारण ही क्लेश रहता है या फिर हर रोज कोई न कोई नुक्सान घर में होता रहता है, धन हानि व रोग आदि हो रहे हैं। किसी भी कार्य के सिरे चढ़ने में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। घर में मन नहीं लगता एक नकारात्मकता की मौजूदगी महसूस होती है। हम इस प्रतीकात्मक शक्तिओ को माने अथवा न माने लेकिन वास्तु की हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है और यह हर रोज हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा होता है।

वास्तु पूजा या वास्तु शांति पूजन
वस्तुतः हम जब की किसी नए भवन में प्रवेश करते है तो भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश अन्य सभी देवी-देवताओं की पूजा करते है, लेकिन वह भवन हमारे लिए विशेष फलदायी हो उसके लिए इनके साथ-साथ वास्तु की पूजा भी जाती हैं। वास्तु पूजन से वातावरण में फैली हुई सभी बाधाओं एवं नकारत्मक शक्तिओ को खत्म किया जा सकता है अन्यथा जीवन जीने में बाधा उतपन्न हो सकती हैं। वास्तु शांति पूजन हमे और हमारे परिवार को अनिष्ट, अनहोनी, नुकसान और दुर्भाग्य से भी बचाता है।

कैसे होती है वास्तु शांति पूजन
आप किसी भी विद्वान पंडित से इसकी सम्पूर्ण जानकारी ले सकते है, वास्तुशास्त्र में कई प्रकार की पूजन विधियां व उपाय वास्तु शांति के लिये बताये गये हैं लेकिन यह पूजन मुख्यत दो प्रकार से होते है पहली उपयुक्त पूजा की विधि द्वारा और दूसरी सांकेतिक पूजा की विधि द्वारा।

उपयुक्त पूजा
- जैसा की नाम से ही ज्ञात हो रहा है, की उपयुक्त पूजा सर्वथा उपयुक्त होती है, इसके लिये स्वस्तिवचन, गणपति स्मरण, संकल्प, श्री गणपति पूजन, कलश स्थापन, पूजन, पुनःवचन, अभिषेक, शोडेशमातेर का पूजन, वसोधेरा पूजन, औशेया मंत्रजाप, नांन्देशराद, योग्ने पूजन, क्षेत्रपाल पूजन, अग्ने सेथापन, नवग्रह स्थापन पूजन, वास्तु मंडला पूजल, स्थापन, ग्रह हवन, वास्तु देवता होम, पूर्णाहुति, त्रिसुत्रेवस्तेन, जलदुग्धारा, ध्वजा पताका स्थापन, गतिविधि, वास्तुपुरुष-प्रार्थना, दक्षिणासंकल्प, ब्राम्हण भोजन, उत्तर भोजन, अभिषेक, विसर्जन आदि प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

सांकेतिक पूजन
- सांकेतिक पूजा तब की जाती है जब समय या धन का आभाव के कारण आप उपयुक्त पूजा कराने में असमर्थ हो या किसी पूर्व निर्माण को तोड़ कर पुनर्निर्माण कराया जाता है, इस पूजन में कुछ प्रमुख क्रियाएं ही संपन्न की जाती हैं जिन्हें नजरअंदाज न किया जा सके।
लेकिन वास्तु शांति के स्थायी उपाय के लिये विद्वान पंडित जी से पूरे विधि विधान के साथ व्यक्ति को सदैव उपयुक्त पूजा ही करवानी चाहिये।

जीवन और मृत्यु एक दूसरे के साथ साथ चलते है, मनुष्य के जन्म के साथ ही उसकी मृत्यु का समय स्थान, परिस्थित सब नियत कर दिया जाता है, फिर भी कई बार सांसारिक मोह में फंसे हुए व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उसकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तब भी उसकी मृत्यु के बाद उसकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। ऐसे व्यक्तिओ के वंशजो को उनके मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही कई बार भांति भांति के कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में उनके वंशजो की कुंडली में झलकता है।

इसके अतिरिक्त अगर किसी व्यक्ति अपने हाथों से जाने या अनजाने अपनी पिता की हत्या करता है, उन्हें दुख पहुंचाता या फिर अपने बुजुर्गों का असम्मान करता है तो अगले जन्म में उसे पितृदोष का कष्ट झेलना पड़ता है

पितृ दोष के लक्षण
वैसे तो इस दोष के लक्षण भी सामान्य होते है, जिनको आप चाहे तो तर्क के आधार कुछ और ही सिद्ध कर सकते है, परन्तु वास्तव में जिसकी कुंडली में यह दोष होता है, वह जनता है की वह अपने लिए कितना प्रयास कर रहा है, फिर भी सफलता न मिलने का उसे कारण समझ नहीं आ रहा, इन समस्याओ में कुछ प्रमुख समस्याएं इस प्रकार से है, जैसे विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना

ज्योतिष विद्या में भगवान सूर्य को पिता का और मंगल को रक्त का कारक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ये दो महत्वपूर्ण ग्रह पाप भाव में होते हैं तो व्यक्ति की कुंडली में पितृदोष है ऐसा माना जाता है

पितृदोष के कुछ ज्योतिषीय कारण भी हैं, जिस व्यक्ति के लग्न और पंचम भाव में सूर्य, मंगल एवं शनि का होना और अष्टम या द्वादश भाव में बृहस्पति और राहु स्थित हो तो पितृदोष के कारण संतान होने में बाधा आती है।

अष्टमेश या द्वादशेश का संबंध सूर्य या ब्रहस्पति से हो तो व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित होता है, इसके अलावा सूर्य, चंद्र और लग्नेश का राहु से संबंध होना भी पितृदोष दिखाता है। अगर व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु का संबंध पंचमेश के भाव या भावेश से हो तो पितृदोष की वजह से संतान नहीं हो पाती।

पितृ दोष निवारण पूजन
अगर आप यहाँ पर लिखी हुयी बातों को पढ़ रहे है तो आपको चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है, आप ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक कृष्ण शास्त्री( कृष्णागुरु) जी को अपनी समस्या बताये और निराकरण प्राप्त करे, पंडित जी ने उज्जैन में एक लंबे समय से पितृ दोष शांति पूजन करवाकर अनेको पुत्रो को इस दोष से मुक्त करवा कर उनके पूर्वजो को प्रसन्न किया है।

दुर्गाजी की महीमा:-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम्‌।
मां दुर्गा साक्षात् शक्ति का स्वरूप है। दुर्गा देवी सदैव देवलोक, पृथ्वीलोक एवं अपने भक्तों की रक्षा करती है। दुर्गाजी संपूर्ण संसार को शक्ति प्रदान करती है। जब कोई मनुष्य किसी संकट या विपरित परिस्थितियों में फंस जाता है एवं उनकी शरण ग्रहण करता है तो वे उसे संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करती है एवं उसे समस्याओं से छूटकारा प्राप्त करने में मदद करती है। इनका पूजन-पाठ आदि बडी विधि-विधान एवं ध्यान से करना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार की त्रृटि होने पर हानी होने की संभावना ज्यादा रहती है। देवी दुर्गा की उपासना करने वालों को भोग एवं मोक्ष दोनो प्राप्त हो जाते है एवं दुर्गाजी साधक की सभी कामनाओं की पूर्ति करती है। मां दुर्गा की कृपा से मनुष्य दुख, क्लेश, दरिद्रता आदि से मुक्त हो जाता है।

दुर्गासप्तशती पाठ करवाने से लाभ
दुर्गासप्तशती के पाठ करवाने से परिवार में सुख-शांति आदि का वातावरण निर्मित हो जाता है।
दुर्गासप्तशती के पाठ करवाने से आकस्मिक संकट या अनहोनी की स्थिति टल जाती है।
इसके पाठ से अदालती कार्यो में सफलता मिलती है।
इसके पाठ के प्रभाव से धनहानी, ऋण आदि की निवृत्ति होती है।
आर्थिक लाभ प्राप्ति के लिए भी दुर्गासप्तशती का पाठ किया जाता है।
जीवन में यदि शत्रुओं से भय एवं समस्याएं आ रही हो तो दुर्गासप्तशती के पाठ से उनसे रक्षा होती है।
किसी अधिकारी के पद जाने की संभावना हो तो दुर्गासप्तशती पाठ से उसकी रक्षा होती है।
किसी विशेष कार्य कि सिद्धि के लिए इसका पाठ करवाना चाहिए।
दुर्गासप्तशती का पाठ करवाने से समस्त प्रकार के रोगों, भयों, दुखों कष्टों आदि से छूटकारा प्राप्त होता है।
मां दुर्गा की प्रसन्नता के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ करवाना चाहिए।

दोष निवारणार्थ अनुष्ठान
मंगल दोष निवारण (भातपूजन), सम्पूर्ण कालसर्प दोष निवारण, नवग्रह शांति, पितृदोष शांति पूजन, वास्तु दोष शांति, द्विविवाह योग शांति, नक्षत्र/योग शांति, रोग निवारण शांति, समस्त विध्न शांति, विवाह संबंधी विघ्न शांति, नवग्रह शांति

कामना पूर्ति अनुष्ठान
भूमि प्राप्ति, धन प्राप्ति, शत्रु विजय प्राप्ति, एश्वर्य प्राप्ति, शुभ (मनचाहा) वर/वधु प्राप्ति, शीघ्र विवाह, सर्व मनोकामना पूर्ति, व्यापार वृध्दि, रक्षा कवच, अन्य सिद्ध अनुष्ठान एवं पूजन

पाठ, जाप एवं अन्य अनुष्ठान
दुर्गासप्तशती पाठ, श्री यन्त्र अनुष्ठान, नागवली/नारायण वली, कुम्भ/अर्क विवाह, गृह वास्तु पूजन, गृह प्रवेश पूजन, देव प्राण प्रतिष्ठा, रूद्रपाठ/रूद्राभिषेक, विवाह संस्कार